Thursday 25 September 2014

Save The Girl Child, Save The Nation






The hand that rocks the cradle, the procreator, the mother of tomorrow; a woman shapes the destiny of civilization. Such is the tragic irony of fate, that a beautiful creation such as the girl child is today one of the gravest concerns facing humanity.

 Photo: Save Girl Child (y)

The hand that rocks the cradle, the procreator, the mother of tomorrow; a woman shapes the destiny of civilization. Such is the tragic irony of fate, that a beautiful creation such as the girl child is today one of the gravest concerns facing humanity.
 Save The Girl Child, Save The Nation 

Photo: Save The Girl Child, Save The Nation 

“[Kids] don't remember what you try to teach them. They remember what you are.”
― Jim Henson

Saturday 22 March 2014

देश के परिवर्तन मे महिलाओं द्वारा हासिल उपलब्धिया

देश के परिवर्तन मे महिलाओं द्वारा हासिल उपलब्धिया 
 https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgjCjWcjCeyEZgZSkReWsa_29T72SE-MldTpDjnlH5m49fZYTHJ3y-ToiMPbF7FFOE6v3aiHjvqug6pyrUHdivXssJT-uPjxnpgG0CdU77NeNjuuEeILprUdsyafHHpDQcswNvmac1OFH8/s400/7-power.jpg
  • 1879: जॉन इलियट ड्रिंकवाटर बिथयून ने 1849 में बिथयून स्कूल स्थापित किया, जो 1879 में बिथयून कॉलेज बनने के साथ भारत का पहला महिला कॉलेज बन गया.
  • 1883: चंद्रमुखी बसु और कादम्बिनी गांगुली ब्रिटिश साम्राज्य और भारत में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने वाली पहली महिलायें बनीं.
  • 1886: कादम्बिनी गांगुली और आनंदी गोपाल जोशी पश्चिमी दवाओं में प्रशिक्षित होने वाली भारत की पहली महिलायें बनीं.
  • 1905: कार चलाने वाली पहली भारतीय महिला सुज़ान आरडी टाटा थीं.
  • 1916: पहला महिला विश्वविद्यालय, एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय की स्थापना समाज सुधारक धोंडो केशव कर्वे द्वारा केवल पांच छात्रों के साथ 2 जून 1916 को की गई.
  • 1917: एनी बेसेंट भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की पहली अध्यक्ष महिला बनीं.
  • 1919: पंडिता रामाबाई, अपनी प्रतिष्ठित समाज सेवा के कारण ब्रिटिश राज द्वारा कैसर-ए-हिंद सम्मान प्राप्त करने वाली प्रथम भारतीय महिला बनीं.
  • 1925: सरोजिनी नायडू भारतीय मूल की पहली महिला थीं जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं.
  • 1927: अखिल भारतीय महिला सम्मेलन की स्थापना की गई.
  • 1944: आसिमा चटर्जी ऐसी पहली भारतीय महिला थीं जिन्हें किसी भारतीय विश्वविद्यालय द्वारा विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि से सम्मानित किया गया.
  • 1947: 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्रता के बाद, सरोजिनी नायडू संयुक्त प्रदेशों की राज्यपाल बनीं, और इस तरह वे भारत की पहली महिला राज्यपाल बनीं.
  • 1951: डेक्कन एयरवेज की प्रेम माथुर प्रथम भारतीय महिला व्यावसायिक पायलट बनीं.
  • 1953: विजय लक्ष्मी पंडित यूनाइटेड नेशंस जनरल एसेम्बली की पहली महिला (और पहली भारतीय) अध्यक्ष बनीं.
  • 1959: अन्ना चान्डी, किसी उच्च न्यायालय (केरल उच्च न्यायालय) की पहली भारतीय महिला जज बनीं.
  • 1963: सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं, किसी भी भारतीय राज्य में यह पद सँभालने वाली वे पहली महिला थीं.
  • 1966: कैप्टेन दुर्गा बनर्जी सरकारी एयरलाइन्स, भारतीय एयरलाइंस, की पहली भारतीय महिला पायलट बनीं.
  • 1966: कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने समुदाय नेतृत्व के लिए रेमन मैगसेसे पुरस्कार प्राप्त किया.
  • 1966: इंदिरा गाँधी भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनीं.
  • 1970: कमलजीत संधू एशियन गेम्स में गोल्ड जीतने वाली पहली भारतीय महिला थीं.
  • 1972: किरण बेदी भारतीय पुलिस सेवा (इंडियन पुलिस सर्विस) में भर्ती होने वाली पहली महिला थीं.
  • 1979: मदर टेरेसा ने नोबेल शान्ति पुरस्कार प्राप्त किया, और यह सम्मान प्राप्त करने वाली प्रथम भारतीय महिला नागरिक बनीं.
  • 1984: 23 मई को, बचेन्द्री पाल माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली पहली भारतीय महिला बनीं.
  • 1989: न्यायमूर्ति एम. फातिमा बीवी भारत के उच्चतम न्यायालय की पहली महिला जज बनीं.[33]
  • 1997: कल्पना चावला, भारत में जन्मी ऐसी प्रथम महिला थीं जो अंतरिक्ष में गयीं.
  • 1992: प्रिया झिंगन भारतीय थलसेना में भर्ती होने वाली पहली महिला कैडेट थीं (6 मार्च 1993 को उन्हें कमीशन किया गया)
  • 1994: हरिता कौर देओल भारतीय वायु सेना में अकेले जहाज उड़ाने वाली पहली भारतीय महिला पायलट बनी.
  • 2000: कर्णम मल्लेश्वरी ओलिंपिक में पदक जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनीं (सिडनी में 2000 के समर ओलिंपिक में कांस्य पदक)
  • 2002: लक्ष्मी सहगल भारतीय राष्ट्रपति पद के लिए खड़ी होने वाली प्रथम भारतीय महिला बनीं.
  • 2004: पुनीता अरोड़ा, भारतीय थलसेना में लेफ्टिनेंट जनरल के सर्वोच्च पद तक पहुँचने वाली प्रथम भारतीय महिला बनीं.
  • 2007: प्रतिभा पाटिल भारत की प्रथम भारतीय महिला राष्ट्रपति बनीं.
  • 2009: मीरा कुमार भारतीय संसद के निचले सदन, लोक सभा की पहली महिला अध्यक्ष बनीं.

Power Of Maa :)

A mother powers her tricycle taking drinking water to supply to restaurants to earn her livelihood.








                                                                                                    Photographer- Rafiqur Rahman.







नई ग़ज़ल और स्त्री साहित्य का सौंदर्यशास्त्र: जगमोहन राय

Nobody can deny the role played by women in our life and in the society. There is a famous saying that a society should be judged from the respect it shows to its women. Unfortunately, Indian society, of late, has degraded itself a lot in this respect. So let's all (Men, particularly) try to rebuild a society where women are respected and treated as equals. By Jagmohan Rai










 

Wednesday 19 March 2014

नारी सशक्तीकरण : लाचार कानून

आज तक महिलाओ की भलाई / सुरक्षा के लिये जितने भी कानून बने है, वो महिलाओ पर हो रहे अत्याचारो और शोषण को समाप्त करने मे असफल रहे है| दिल्ली के गॅंग रेप घटना के बाद सरकार कुछ नये कानून बनाने और पुराने कानूनो पर संसोधन करने पर विचार कर रही है| प्रश्न यह है क्या सिर्फ कानून बनाने से समस्याए खत्म हो जायेगी?? आइये नजर डाले आज तक महिलाओ के लिये बनाये गये कुछ चुनिदा लेजिस्लेशन पर और सोचे कितना कारगर साबित हुए और कितने प्रभावशाली तरीके से इन्हे लागू किया गया है|

1.दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961
दहेज प्रथा रोकने मे यह कानून असफल रहा है, यह हम सब जानते है| आये दिन दहेज की प्रताडना की शिकार महिलाये जो आत्मघात करती है या मार दी जाती है उनके बारे मे खबरे अखबारो पर आती रहती है| यह प्रथा एक अभिशाप बन गयी है| कितनी ही मासूम नव वधू / दुल्हने पिछले 30-40 सालो मे हमारे देश मे मारी जा चुकी है, यह आकडे दिल दहलाने वाले है| और लड़के वालो की भूख शांत नही होती दिखती है| आज भी दहेज लिया और दिया जा रहा है| ऐसा लगता है जल्दी धनवान बनने का इससे आसान तरीका और कोई नही रहा है| मुफ्त का टीवी / फ्रिड्ज/ कार/ फ्लॅट पाने के लिये लडको की बोली लगाई जा रही है| एक ऐसी पीढी तैयार कर दी है हमने जिनकी रीढ़ की हड्डी नही है और याचक बनकर भी अकड दिखा कर खड़े है| मॉडर्न "कूल" जेनरेशन भी जब दहेज की बात आती है, तो मां के पल्लू मे छुप  जाते है, और जो घर के बड़े फैसला / मोल भाव करते है वो चुपचाप स्वीकार करते है|

2.महिलाओं के अश्लील प्रतिनिधित्व (निषेध) अधिनियम, 1986 
महिलाओ को गलत वा अश्‍लील और कामुक तरीके से प्रदशित करना, आज आम बात है| महिलाये "आइटम" हो चुकी है और बाजार तैयार है, चाहे गाडिया - बाइक बेचनी हो या मोबाइल हर जगह युवा लड़कियॉ का अश्लील प्रदर्शन हो रहा है| प्रिंट मीडिया हो या ई-मीडिया, नारी का शोषण हो रहा है| जो विरोध कर रहा है वो दकियानूसी है| दुख है कि नारी भी इसमे सहभागी है, और अपने आप को उपभोग का वस्तु बनाने मे सहयोग दे रही है| आज "प्लेबाय" के मुख्य पेज मे नग्न फोटो आने पर एक अभिनेत्री भारत के लिये यह गौरव की बात है ऐसा बता रही है| किंगफिशर के सालाना कॅलंडर मे अर्धनग्न मॉडेलो मे शामिल होना गर्व का विषय बन गया है युवा लड़कियॉ के लिये|

3.अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम, 1956

सब जानते है की मानव ट्रॅफिकिंग एक बहुत बड़ी समस्या बन गया है| मानव ट्रॅफिकिंग जिसमे महिलाओ और छोटे बच्चो की तस्करी होती है, इनमे मामलो ज्यादा तर  लड़कियॉ को वेश्यावृति मे लगाया जाता है|  और जिसका अंत होता दिख नही रहा है| एक रिपोर्ट के अनुसार भारत मे ना सिर्फ गरीब क्षेत्रो से, कस्बो से, बल्कि नेपाल, बांग्लादेश, म्यामार से लड़किया अवेध रूप मे लाई जा रही है, जिन्हे या तो भारत के बड़े शहरो मे बेचा जाता है, या गल्फ / युरोप मे सप्लाइ किया जाता है| अधिकतर मामलो मे इन लड़कियॉ का सेक्स के लिये उपभोग होता है| एक रेड लाइट एरिया की महिला के अनुसार जब से पॉर्न मोबाइल और इंटरनेट मे उपलब्ध हो गया है, "कस्टमर" की मांगे बढ गयी है| अब चाइल्ड पॉर्न के आने से छोटी लड़कियॉ की मांग बढ गयी है| और यह वो मासूम जिंदगीया समाज के उस तबकेका प्रतिनिधितव कर रहे है जिनके लिये कोई कॅंडल लाइट मोरचे नही निकालता| ऐसे मासूमो का भविष्य दाव इसलिये लगाया जा रहा है ताकि समाज के कुछ लोगो की खास 'भूख' मिटाई जा सके,  जो पूरा नही हो पाये तो समाज मे अराजकता फैल जायेगी| सब चुप है, क्योकि  उन गरीब लड़किया का भविष्य ऐसे भी कुछ खास नही था|  कुछ सालो के बाद इन लड़कियॉ की किस्मत मे बिमारियो और लाचारियो के अलावा कुछ नही बचता|

4.घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम 2005


महिलाओ के साथ घरेलू हिंसा की खबरे विश्व के हर कोने से आती है| एक अनुमान के अनुसार 70% महिलाये भारत के घरो मे घरेलू हिंसा का शिकार होती है| घरेलू हिंसा मे ना सिर्फ शारारिक प्रहार शामिल है, ब्लकि मानसिक यंत्रणा भी आती है| हर 9 मिनिट मे एक महिला को उसके पति या घरवालो द्वारा प्रताडना दी जाती है| और इन घरेलू  हिंसा की शिकार महिलाओ मे सुशिक्षित व कामकाजी महिलाये भी शामिल है| माता पिता द्वारा ऑनर किल्लिंग या ससुराल मे मिलते ताने, थप्पड़,  जितना अपमान  महिलाओ का घरो की चार दीवारो के अंदर होता है उतना शायद ही और कही होता होगा| और कितनी महिलाये इस कानून का सहारा ले पाती  है? सब यही राय देते है कि चुप रहो और अपना घर बचाओ|

यह तो सिर्फ कुछ कानून है, चाहे बाल विवाह निरोधक अधिनियम, 1929 या, गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971 हम असफल रहे है| यही बात  बाल श्रम (निषेध एवं विनियमन) अधिनियम, सं 1986 या सती (निवारण) अधिनियम, 1987 के कमीशन, जैसे और भी कानूनो पर लागू होती है| भारतीय दंड संहिता [आइ पी सी] मे महिलाओ की सुरक्षा के लिये जो प्रावधान हो या इंडियन एविडेन्स आक्ट के नियम, वास्तविकता मे महिलाओ को सशक्त नही बना सकते|


हमे जानना चाहिये कि कानून की भी अपनी सीमाए है| एक स्वंतत्र और शिक्षित लोगो के लिये उपयोगी है, पर जो अपने अधिकारो के प्रति सचेत नही है, उनके लिये कुछ नही किया जा सकता| महिलाओ का उदधार सिर्फ महिलाओ द्वारा ही हो सकता है|

अगले 20 सालो मे आने वाली नयी पीढी की महिलाये अगर चाहे तो 2000 सालो से ज्यादा चला आ रहा अन्याय समाप्त हो सकता है| पर शर्त यही है की अपने सिध्दातो के लिये लड़ना सीखना पड़ेगा आप लोगो को| यह लड़ाई हर घर से लड़नी होगी आपको| हर कदम मे कठोर निर्णय लेने होंगे| चाहे कोई भी धर्म हो, या समाज, नारी का अपमान सबने किया है| अब आप लोगो को अपना मुकाम स्वय तय करना पड़ेगा| बिना आर्थिक आजादी के आप मानसिक आजादी पा नही पाओगे| आप माँ के रूप मे अपने बेटो को महिलाओ को सन्मान देना सिखाये, और बेटियो को आत्मनिर्भर बनाना सिखाये| सास के रूप मे बहू के नारी अधिकारो के प्रति सचेत रहे और अगर आपका बेटा बहू के अधिकारो का हनन करता है, या अपमान करता है तो बहू का साथ दे| अगर एक स्त्री ही स्त्री का साथ नही देगी तो यह अन्याय समाप्त नही हो पायेगा| न्याय की कसौटी मे परखोगी तो कौन सही है कौन गलत यह निर्णय लेना आसान हो जायेगा|

जिस तरह गलत कदम उठने पर पति कभी पत्नी को क्षमा नही करता, उसी तरह कुमार्ग पर जाने वाले पति को क्षमा नही करना चाहिये| क्या जरूरत है रिश्तो की लाश ढोने की| जिस रिश्ते मे स्नेह नही, सन्मान नही, प्रेम नही, उसे बनाये रखने का का क्या मतलब है??  अगर कोई पति दूसरी स्त्री से अनेतिक सम्बंध रखता है, तो उसे अपमान का घुट पी कर क्यो बर्दाश करने का? कुछ रास्तो से वापसी नही होनी चाहिये| अगर आप सही हो तो ईश्वर कभी भी आपके साथ गलत नही होने देगा| पर लड़ना सीखो| भगवान गीता मे कहते है, अच्छे लोगो का कभी भी बुरा अंत नही होता| अच्छाई और सत्य के मार्ग पर चलने वाला कभी बुराई से पराजित नही होता| और जीवन के अंत मे आप अपने आप को सन्मान  की नजरो से देख पायेगी, की आपने सिर् उठा कर जिया|
गर्भपात नही कराना है, दहेज देना है या नही, यह सारी बाते विवाह से पहले ही साफ कर देनी चाहिये| पहले की क्लियर कर दो की भ्रूण परीक्षण नही कराएगी, और जो उपहार प्रकृति से  मिलेगा, वो स्वीकार करेंगे|
अपने आप को उपभोग की वस्तु बना कर फिल्मो और अखबारो मे आने नही दो|

माता पिता को शादियो मे बेशुमार खर्चे करने की जरूरत ही नही है| सादगी और प्रेम से कम लोगो को बुलाकर शादी कराये| और बचत किये हुए पैसे बैंक मे बेटी  के नाम पर जमा कर दे| अगर शादी 8-9 साल तक चलती है, तो बेटी-दामाद को दे वर्ना बेटी के तो काम आ ही जायेगा| बेटियो के लिये सबसे बड़ी सम्पती उनको दी हुई शिक्षा है| उनकी शिक्षा पर खूब खर्चे करे| वो अपने आप को इतना बहुमूल्य बना दे, कि इस संसार का सारा दहेज उसके सामने फीका पड जाये|

लडको को भी घर का काम सिखाये| पत्निया कोई अनपेड नौकरानिया नही है, जो जिंदगी भर आपकी दासता करती रहेगी| अक्सर मा-पिता का यही नजरिया होता है, बेटो को सिर् चढ़ा दिया जाता है| कुंवारे आदमी को भी यही राय मिलती है की शादी कर लो वर्ना कपड़े कौन धोयेगा, खाना कौन बनायेगा| जैसे पत्नियो का काम सिर्फ यही है| कोई यह नही कहता की आगे जाकर जीवन साथी की जरूरत पड़ेगी| लोगो की मानसिकता 21 वी सदी मे भी वही दकियानूसी है|

भारत तो आज़ाद हो गया पर हमारी महिलाये आज भी दासता का जीवन जी रही है| तोड दो,  उन बंधनो को जो तुम्हे दास बना रहे है,  जो तुम्हारा गला घोट रहे है| वो विचारधारा जो  तुम्हारा शोषण कर रही है, उन्हे त्यागना जरूरी है|
अपनी शक्तियो को पहचानना सीखो| तुम प्रकृति रूपा हो, शक्तिशालिनी हो, दुर्गा हो, लक्ष्मी हो, विद्या हो, तुम इस जगत की आधार हो| तुम्हारे बिना सृष्टि की संभावना ही नही| तुम्हे अपना उद्धार करने के लिये किसी के सहारे की जरूरत नही है| तुम स्वय अपना सर्वोच्च स्थान पाने मे समर्थ हो| तुम्हारा कल्याण हो| तुम दोषरहित हो, निर्मला हो, ऋग्वेद, यजुर वेद का आधार हो| तुम मोक्ष प्राप्ति का साधन हो| तुम अलोकिक तो, अतुल्य हो, अप्रमेय हो, अदभुत हो, अमूल्य हो, तुम जैसी रचना प्रकृति मे और कोई नही| तुम्हे नमस्कार है!

या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेणा संस्थिता 
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

जो देवी सभी मे शक्ति रूप मे विराजमान है उन्हे नमस्कार है, नमस्कार है, बांर बार नमस्कार है!
 स्त्रोत: राजेश्वर, नवभारत टाइम्स

Friday 7 March 2014

Happy International Women’s Day :)

It’s 8th March, International Women’s Day. A day to celebrate the being of women and to appreciate the efforts, they made, during their lives. Let’s pay tribute to all the women of the world for they are the one whose presence is responsible for the world today and always.

‘मनुस्मृति’ में लिखा है—
यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवत:।
यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।।
(मनुस्मृति,3/56) अर्थात् ”जहाँ स्त्रियों का आदर किया जाता है, वहाँ देवता रमण करते हैं और जहाँ इनका अनादर होता है, वहाँ सब कार्य निष्फल होते हैं।जहाँ नारी की पूजा होती है, वहाँ देवता भी निवास करते हैं।
 

Thursday 13 February 2014

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महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा त्रासदी से कम नहीं तो क्या  ?

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सुरक्षा किसकी हो रही  है? सवाल किसपे उठ रहा हैमहिलाओं के प्रति हो रहा शोषण, दुराचार उफान पर है और जवाब किसको खोज रहा है ? वक्त तो करवट लेकर ज़माने की चौखट का चबूतरा बदल दिया है लेकिन महिलाओं के प्रति हो रही हिंसा स्त्रियों के हौसले को कम करता जा रहा है इतनी दयनीय स्तिथि हो गयी है की अब सवाल नारी के वजूद का नहीं पुरुष के पुरुषार्थ पे है जिस तरह से ऐसे हिंसा को अंजाम देते जा रहे है जिससे अब समाज में आदमी भी रहता है क्या? जैसे सवाल मन से स्वतः उठने लगे हैं महिलाओं के साथ हिंसा आज से नहीं बहुत पहले से होती रही है उनको निचा दिखाना, उनको प्रताड़ित करना ये सब नए किस्से नहीं है साहित्य भी इस बात का गवाह है लेकिन जैसे जैसे भारत की साक्षरता दर बढ़ रही है वैसे-वैसे अपराध का स्तर आसमान छूता जा रहा है साक्षरता दर बढ़ी है तो परिणाम ये हुआ है की मानसिकता अँधा-धुंध आँख मिचोली खेल रही है गरीबों का माई-बाप अँधा कानून बना बैठा है जुर्म अपनी सीमा और हदे पार कर दी है लेकिन न्याय की तरक्की अपनी सीमा तक नहीं पहुंचा है जिसकी वजह से हजारों लाखों सीमायें अन्याय जुर्म के निचे दबी पड़ी है और महिलाओं के लिए बनाये गए कानून खुद एक दुसरे को नहीं जानते की उनका जन्म क्यूँ हुआ है प्रकृति ने भी कहाँ है हम संतुलन के दूत है शायद मनुष्य इसलिए जानवर से अलग है क्यूंकि संतुलन करने की वृहद् क्षमता उसे असीम ईश्वर ने प्रदान की है लेकिन समाज में क्या हो रहा है इस प्रश्न का उत्तर प्रश्न में रह जा रहा है और अन्याय न्याय को घुटने के बल बिठा दिया है अब जुर्म उम्र नहीं देखता है, समय नहीं देखता, इंसान नही देखता, पर न्याय क्यूँ नतीजा देने के लिए उम्र का इंतज़ार करता है? क्या समाज केवल एक वर्ग के बल पर जीवंत होगा? क्या महिलाओं के प्रति हिंसा और पुरुषों अन्दर भरे घिनौने विचारों से हम सुन्दर समाज की कल्पना कर सकते है ? बहुत ही शर्मनाक स्तिथि है हम भारत को भारत माता कह कर पुकारते है, जिस देश को देवी के रूप में देखते है माँ कहते है, वही महिलाओं के साथ ऐसे घटनाएं क्या देश को विकास की और ले जा सकती है ? कदापि नहीं आज भारत अनेक समस्याओं से जूझ रहा है। उसका कारण मैं तर्क के आधार पे तो नहीं अपने मन में पनपते विचारों के द्वारा यही कह सकती हूँ अगर माँ को सतायेंगे, माँ को गाली देंगे, माँ की इज्ज़त नही करंगे तो आप भी उसी माँ की संतान है आखिर आप माँ को प्रतारित करके कैसे तरक्की करेंगे ?जब माँ का आशीर्वाद ही नहीं मिलेगा तो सफलता और विकास की सवाल नही बनता इसलिए सबसे पहले महिलाओं पे हो रहा हिंसा को रोक जाए और जितना भी जल्दी हो सके अपराधियों, दुराचारियों को सजा दी जाए जिससे अन्य घिनौनें अपराधियों के अन्दर डर  नाम की चीज़ उत्पन्न हो. जिस तरह से दुराचार, छेड़छाड़, अश्लीलता जैसे बुरे कार्य दिनों-दिन हो रहे है इससे भारत माँ का शीश शर्म से झुका है हमारा देश मर्यादा, संस्कार, सभ्यताओं के लिए जाना जाता है लेकिन पता नहीं जमाना किस आंधी में अपने आँखों में धुल झोक जा रहा है और अपने संस्कार को चित से चिरता जा रहा है। अभी भी देर नहीं हुई है किसी के बेटी , बहन, बहु  के साथ अगर हिंसा हो रही है तो आवाज उठायें चुप बैठ क्यूंकि घर किसी और का जलेगा तो चिंगारी आप तक जरुर पहुचेंगी। हम बहुत भाग्यशाली है की भारत की भूमि में हम सब का जन्म हुआ है अनेकों सभ्यताओं संस्कृतियों से परिपूर्ण ऐसा कोई देश होगा जैसे भारतवर्ष है अपने मन को पवित्र रखे और देखे दुनिया कितनी खुबसूरत हैसभी ईश्वर अल्लाह के बच्चे है इसलिए किसी को नुकसान पहुचना परम-पिता को चोटिल करने के सामान है अपने घर से लेकर सड़क तक जहाँ भी महिलाएं, बालिकाएं, बच्चियां के प्रति आदर रखे क्यूंकि बढती हिंसा से महिलाओं के मन में विश्वास जैसे चीज़ ख़त्म होती जा रही है। भारतीय होने के नातें अपने अस्तित्व को समझे और महिलाओं के प्रति हो रहे हिंसा को जड़ से ख़त्म करने का संकल्प ले।


 ऋतु राय