Thursday, 16 January 2014
Sunday, 5 January 2014
мαѕѕ мє∂ια & мσтнєя (ωσмєη)
जनमाध्यम और जननी
‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते
रमन्ते तत्र देवता:’

उपरोक्त श्लोक का अर्थ है जहां नारी देवी के रूप में पूज्य मानी जाती है, और उनको सम्मान दिया जाता है। वहाँ हमेशा देवता निवास करते हैं और आनंद सुख व्याप्त रहता है। भारत में प्राचीन काल से ही स्त्रियों को सम्मान दिया जाता रहा है। सम्प्रेषक की बात की जाएँ तो प्राचीन काल में संप्रेषक के रूप में गार्गी, अपाला, घोषा, आदि विदुषियों का संदर्भ आपको ऐतिहासिक ग्रंथो में विस्तार से मिल जाएगा। इनका योगदान समाज में दशा और दिशा दोनों को बदलने में रहती थी। इतिहास में कई ऐसी घटनाएँ है जिसमें विजय की सहभागी महिलाएं भी रही है। भारत की प्रथम शासिका रज़िया सबसे बड़ा उदाहरण है। जिसने अपने पिता की राजगद्दी को बड़े गर्व के साथ स्वीकार कर उसको आगे गति प्रदान की थी। लेकिन आज के उपलक्ष में बात करें तो महिलाओं की स्थिति दयनीय है। आखिर उनके ऊपर बढ़ती हिंसा का कारण क्या हो सकता है ? जो लगातार आकड़ों और प्रतिशतों में वृद्धि करती जा रही है। भारतीय परिवेश की बात करें तो अनेक ऐसे मोड़ आयें है जहां महिलाओं की स्थिति में नकारात्मक बदलाव आए हैं। इसके अन्य कारण भी है जिनमें पुरुषवादी मानसिकता, महिलाओं को रोजगार आदि में काम करने से रोकना।
आधुनिक जनमाध्यमों के तेज़ी से प्रसार करते विकास ने अनेक सामाजिक-सांस्कृतिक परिवर्तनों को दिशा दी है। सरल शब्दों में कहा जाएँ तो जनमाध्यमों ने जननी को नई छवि के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश की है। इसमे महिलाएं दोनों पहलूवों से प्रभावित हुई है जिसमे सकारात्मक – नकारात्मक दोनों विस्थापित है। लेकिन हम नकारात्मक पक्ष की बात करेंगे क्यूंकी जिस तरह से महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा का दर आसमान छूटा जा रहा है उसकी जिम्मेदार हमारे जनमाध्यम भी है। महिलाओं को अनेक शब्दों से पुकारा गया जिसमे वामा, भामिनी, कामिनी, अर्धागिनी, अबला और भी अनेक शब्द है। सभी शब्दों का अर्थ भी एक दूसरे से भिन्न है जैसे वामा सौन्दर्य का , अर्धागिनी नारी पुरुष के बराबर भागीदारी का सूचक शब्द है । अबला जो कहीं न कही महिला को शारीरिक रूप से ऊपर मानसिक रूप में प्रबल पता है। महिलाओं के बिना दुनिया की कल्पना ही नही की जा सकती है । जब कल्पना का निर्माण नहीं होगा तो आप कौन सी दुनिया देखेंगे ? महिलाएं पुरुषों की अपेक्षा संवेदनशील होती है। उनके अंदर कुशल गृहणी से लेकर प्रबंधन तक की निपुण क्षमता पाई जाती है। धैर्य की धारणा तो महिलाओं के अंदर से ही शुरू होती है जो 9 महीने तक अपने पेट में दूसरे जीवन को जीवन देने के लिए उत्सुक रहती है। इससे आप अनुभव लगा सकता है। ममता , मृदुलता असीम धैर्य का संसार स्त्री में परिपूर्ण होता है। जो जग में जीवन को महत्वपूर्ण बनाने में सबसे बड़ा योगदान निभाती है। लेकिन आज उनके साथ क्या हो रहा है ? यह सब जानते हुये भी इतना सन्नाटा क्यूँ है ? क्यूँ इतनी शांति के साथ सद्भाव की बात की जा रहा है? आज भी महिलाओं को आर्थिक रूप से पुरुषों पर निर्भर रहना पड़ता है जिससे उनके विकास और विस्तार का दायरा एक चार दीवारी में ही घुटकर के रह जाता है। महिलाओं की स्थिति जीवन के अस्तित्व का निर्माण करने वाले हर दायरे पर सिमटी हुई है। स्वास्थ का ही क्षेत्र ले आप देखेंगे पुरुषों से कहीं ज्यादा महिलाएं कुपोषण का शिकार होती है क्यूंकी घर में लड़की के पैदा होने से पहले ही उसके खान-पान और शादी व्याह का भाव तय हो जाता है । उसकी शिक्षा-दीक्षा , स्वतन्त्रता की सीमा पुरुषों द्वारा निर्धारित कर दी जाती है। समाज में सबसे ज्यादा सहती है सबसे ज्यादा सहमती है लेकिन फिर भी अत्याचार कम नहीं होता है। महिलाओं के सामने अनेक प्रकार की समस्या सिर उठाएँ खड़ी है फिर भी वो अपनी कोशिशों को कम नहीं करती है उनका प्रयास जारी है। तमाम परेशानियों के बावजूद आज भी महिलाओं को जहां मौका मिलता है वो उसमें बेहतर करके दिखा रही है। शिक्षा के मामले में ही देख ले वो पुरुषों से बेहतर पाई जाती है जबकि उनके कंधो पर घर की ज़िम्मेदारी का बोझ पहले से ही दबा रहता है फिर भी ज्ञान के स्तर से वो उसके हल्का करने की प्रबल कोशिशें लगातार कर रही है। नौकरी और व्यवसाय में भी अपना वर्चस्व बनाए हुये है। अगर हम जनमाध्यमों और उसमे महिलाओं की बात करें तो मीडिया ने महिलाओं के संघर्षों में महत्वपूर्ण रूप से भूमिका का निर्माण तथा महिलाओं का समर्थन भी किया है उनकी लड़ाई को एक ऊंचाई दी है। लेकिन इन सबके बावजूद मीडिया ने महिलाओं को एक वस्तु, उपभोग के रूप में प्रस्तुत करने का जरिया भी बनाया है। इस तरह महिलाओं के प्रति लोगो का बदलता नजरियाँ कहीं न कहीं इन जनमाध्यमों से भी प्रभावित हुआ है जिसमे सिनेमा, टेलीविज़न विशेष रूप से है। महिलाओं को जनमाध्यम द्वारा विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया जा रहा है। अब तो शेविंग क्रीम तक के विज्ञापन में महिलाओं को प्रयोग किया जा रहा है। महिलाओं को सीधे सीधे मीडिया एक आकर्षण की वस्तु बना कर पेश कर रहा है। भारत जैसे देश में नारी का कल का चरित्र और आज के चरित्र की तुलना करें तो इतना ज्यादा बदलाव पाएंगे की यह कहने में समर्थ नहीं रहेंगे की हम भारतीय है और हम क्या कर रहे है और क्या देख रहें है? टेलीविजन पर आने वाले विज्ञापन को ही ले लिया जाएँ। नारी को अर्ध-नग्न रूप में पेश किया जाता है सिर्फ उत्पादों को बेचने के लिए? अब आप ही सोचिए उत्पाद बिके या न बिके लेकिन नैतिकता तो जरूर जनमाध्यमों द्वारा खुले-आम बेचा जा रहा है। इस तरह ऐसे विज्ञापन या फिल्म ही ले लीजिये अगर ऐसे चीजों को हमारे बीच में प्रस्तुत किया जाएगा तो व्यक्ति के अंदर क्या जाएगा उसको क्या संदेश मिलेगा? उसके मानसिक स्तर पर क्या प्रभाव पड़ेगा? आज भारत में हर वर्ग के लोग टेलीविज़न, फिल्में बड़े ही शौक से तल्लीन होकर देखते है ऐसे में वो जो देखते है उसमे अपने आप को भी उतारने लगते है। उदाहरण स्वरूप जब लड़के सड़क पर लड़कियों को आता जाता देखते है तो अक्सर फ़िल्मी डाइलोग या फ़िल्मी गानों के द्वारा उन्हे परेशान और छेड़छाड़ करते है। उनके दिमाग पर देखी हुई चीज़ें छाप छोड़ देती है। वो अच्छा कम बुरा ज्यादा ग्रहण करते है। इस तरह जनमाध्यमों द्वारा जननी प्रभावित हो रही है और समाज में उनके चरित्र का नींव गिरता जा रहा है। बहुत जरूरी है की हम सबको समाज में व्याप्त बुराइयों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए नहीं तो आने वाला समय हम समाधान तक निकालने का समय नहीं देगा। समाज में जनमाध्यमों का कार्य वहीं तक सीमित रहे जहां तक समाज को वो रास्ता दिखा सके, रास्ते को बदलने की कोशिश न करें ,क्यूंकी रास्ता दिखाना और रास्ता बदलना इनमें बहुत विभिन्नता है। अगर आप रास्ता दिखा सकते है तो दिखाएँ नहीं तो रास्ते बदलने पर आप भूल रहें है आप भी अपनी चेतना को भटकाएंगे। आज जनमाध्यम ये भूल रहे हैं की वो जिस चित्र का निर्माण कर रहे है उसकी वजह से चरित्र का विघटन करते जा रहे हैं। जनमाध्यमों को भी कार्यशाला का आयोजन कर महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा और उनका मीडिया द्वारा प्रस्तुतीकरण पर वृहद रूप से चर्चा का आयोजन करना चाहिए। अगर समय रहते हम सब सचेत नहीं हुये तो एक समय ऐसा आएगा जहां इस संसार का अंत होगा क्यूंकी यह संसार केवल पुरुषों से नहीं बना है इसमे महिला और पुरुष दोनों का सजीव चित्रण हुआ है। महिलाओं के प्रति बढ़ती हिंसा को रोकने के लिए कड़े कदम उठाए जाने चाहिए और जनमाध्यमों को एक सीमा तक महिलाओं के प्रति उनके प्रस्तुति के नजरियों को बदलने के लिए विस्तृत विचार करना चाहिए।
ऋतु राय
Thursday, 2 January 2014
I Miss You Mummy. I will Do What You Want :) ..
एक संवेदनशील दिल
एक प्यारी मुस्कान
हमेशा मदद के लिए
आगे आते उनके हाथ
मीलों मिल के पार
हम सबकी प्यार
नम्रता और ताकत
दोनों का संयुक्त मेल
वह मौजूद रहती है
उसमें
ठीक दरवाजें पर सुबह के सूरज की तरह
माँ मुझे तुमसे बहुत प्यार है
ये वाक्य अल्प है तुम्हारी मोह ममता के आगे
पलके झुक के आँखों के आगे नमन करती है है
ऐसा रूप जिसका अहसास करने से
सम्पूर्ण मेरे होने का अस्तित्व तय करता है
आपका प्यार बिना किसी शर्त के
बरसता है
जिसकी कीमत नहीं
जिसकी कोई उपमा नहीं
जिसका कोई तुलना नही
माँ को कोटि कोटि प्रणाम
हमारे पास आपके लिए
आदर, सम्मान, सत्कार
और आपके दिए हुए संस्कार के
अलावा कुछ भी नहीं
सब कुछ आपका दिया हुआ
तो हम क्या देंगे उस भगवान् को
जो सिर्फ देता है और कुछ न लेता हो
माँ हम आप से बहुत प्यार करते है
आज अभी प्रतिदिन.. और हमेशा
ऐसे ही करते रहेंगे।।।
एक प्यारी मुस्कान
हमेशा मदद के लिए
आगे आते उनके हाथ
मीलों मिल के पार
हम सबकी प्यार
नम्रता और ताकत
दोनों का संयुक्त मेल
वह मौजूद रहती है
उसमें
ठीक दरवाजें पर सुबह के सूरज की तरह
माँ मुझे तुमसे बहुत प्यार है
ये वाक्य अल्प है तुम्हारी मोह ममता के आगे
पलके झुक के आँखों के आगे नमन करती है है
ऐसा रूप जिसका अहसास करने से
सम्पूर्ण मेरे होने का अस्तित्व तय करता है
आपका प्यार बिना किसी शर्त के
बरसता है
जिसकी कीमत नहीं
जिसकी कोई उपमा नहीं
जिसका कोई तुलना नही
माँ को कोटि कोटि प्रणाम
हमारे पास आपके लिए
आदर, सम्मान, सत्कार
और आपके दिए हुए संस्कार के
अलावा कुछ भी नहीं
सब कुछ आपका दिया हुआ
तो हम क्या देंगे उस भगवान् को
जो सिर्फ देता है और कुछ न लेता हो
माँ हम आप से बहुत प्यार करते है
आज अभी प्रतिदिन.. और हमेशा
ऐसे ही करते रहेंगे।।।
Wednesday, 1 January 2014
“What would men be without women? Scarce, sir...mighty scarce.”
― Mark Twain
― Mark Twain
जब धरणी नहीं तो ये व्योम किसके लिए ?
जब नारी का वजूद नहीं तो नर किसके लिए ?
निष्ठा में भरोसा नहीं तो प्रेम किसके लिए ?
आशा में किरण नहीं तो वह तिमिर किसके लिए ?
वाणी में स्वर नहीं तो यह वीणा किसके लिए ?
..............
ऋतु राय
.
तुझे तिरंगें के आँचल में माँ ने आज लपेटा !
जान लुटाकर कफ़न ओड़कर आज मौन लेटा !
भारत माता का सपूत अमर जवान ये बेटा !!
नाम शहीदों में अपना आज लिखा ,
टूट गया एक तारा अपनी चमक दिखा ,
खून बहा सारा पर साहस ना छूटा !
भारत माता का सपूत अमर जवान ये बेटा !!
देश की शान बचाने को खुद को करता कुर्बान ,
जान से ज्यादा प्यारी भारत माता की आन ,
तुझे तिरंगें के आँचल में माँ ने आज लपेटा !
भारत माता का सपूत अमर जवान ये बेटा !!
अटल रहे यश तेरा मेरी है कामना ,
इनके बलिदानों को भारत न भूलना ,
नतमस्तक हो तुझे सलामी जन-जन है देता !
भारत माता का सपूत अमर जवान ये बेटा !!
जय हिन्द ! जय जवान !
शिखा कौशिक ‘नूतन’
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